शनिवार, 21 जून 2014

एक मनुहार मन से ------

खोल दे वितान मन |

छट गई है स्याह धुंध
नभ धरा के दरमियाँ
छत की मुंडेर को
छू रही हैं रश्मियाँ
हो रहा विहान मन
 खोल दे वितान मन |

कल की बात कल रही
आज भोर हँस रही
हवाओं के हिंडोल पे
पुष्प गंध बस रही
उड़ रही हैं दूर तक
धूप की तितलियाँ
 तू भी भर उड़ान मन
खोल दे वितान मन |

झूमने लगी लहर
सूर्य का पा परस
बूँद-बूँद झर रहा
ज्योति से भरा कलश
नटी सी थिरकने लगीं
मांझियों की कश्तियाँ
छेड़ कोई गान मन
खोल दे वितान मन |

दूर उस पहाड़ पर
 दीप एक जल रहा
ओट विश्वास के
 आँधियों से लड़ रहा
 संग संग चल मेरे
  कह रहीं पगडंडियाँ
 मन की बात मान मन
 खोल दे वितान मन |

          शशि पाधा 7 जनवरी, २०१४


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