शनिवार, 25 जुलाई 2015

तकरार –मनुहार ----माहिया
       *        
भरमाए रहते हो
बरसो तो जानें
बस छाए रहते हो |
    *
कुछ पल को तड़पोगी
गर हम बरस गए
चुनरी में भर लोगी |
      *
कुछ समझ नहीं आता
सच-सच कह देना
बिजुरी से क्या नाता ?
      *
मुझको तो वो भाती
नभ की गलियों में
हम बचपन के साथी |
      *
थोड़े से काले हो
धूप बताती है
कुछ भोले भाले हो |
      *
हम तो बंजारे हैं
इत-उत फिरते हैं
औरों से न्यारे हैं |
      *
क्यों रोज़ सताते हो
इक पल दिख जाते
दूजे छिप जाते हो |
      *

यह खेल पुराना है
आँख मिचौनी को
प्रेमी ने जाना है |
      *
यह बात  तभी जानूँ
मन के आँचल में
छिप पाओ तो मानूँ |
      *
इस पल को तरस गए
आँखें मींचो तो
लो हम तो बरस गए |
       *
आँखों में भर लेंगे
तुझको मोती सा
पलकों में जड़ लेंगे |
      *
बूँदें जो झरती हैं
आँखों की झीलें
हमसे ही भरती हैं |
       *
सावन को जाने दो
तुम तो रुक जाना
त्योहार मनाने दो |
      *
लो कैसे जाएँगे
 डोरी प्रीत भरी
हम तोड़ न पाएँगे |

   शशि पाधा


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