शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

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जीवन की किताब

ना स्याही, ना हाथ कलम
ना शब्दों का हिसाब
मन के पन्नों पर लिख डाली
जीवन की किताब |

पढ़े कोई, ना धरे सहेजे
पाला ना मलाल कभी  
यूँ ही लिखते उम्र गंवाई
पूछे ना सवाल कभी  
 सम्बन्धों के शब्द कोष में
 ढूँढा ना  जवाब |

आढ़ी-तिरछी रेखाओं पे
लिखा वही, जो लगा सही
ना ही जीवन नापा तोला
ना घाटे की बात कही
  दिल में कोई पीर ना बाँधी
  बस बाँधा सैलाब |

रिश्तों ने जब खेली चौपड़
दाँव पेच कुछ आया ना  
हार जीत का भेद न जाना
समझा तो, मनभाया ना  
  बस इतना ही समझा, जीवन
  काँटों संग गुलाब |

समय का तांगा दौड़ा फिरता
पाँव रुके ना साँस थमी
फिर भी जाने पलकों पर क्यों
बूंदों की कुछ रही नमी   
   मन को इतना ही समझाया 
   होना ना बेताब|
 

शशि पाधा



2 टिप्‍पणियां:

  1. अनुभव जीवन जीने का ढंग सिखा देता है ..
    बहुत सुन्दर रचना
    बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ...

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कविता जी , स्नेह बनाए रखें |

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