शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

नवगीत

गर्मी के दिन

कुछ अलसाये
कुछ कुम्हलाये
आम्रगन्ध भीजे, बौराये
काटे ना
कटते ये पल छिन
निठुर बड़े हैं गर्मी के दिन
धूप-छाँव
अँगना में खेलें
कोमल कलियाँ पावक झेलें
उन्नींदी
अँखियां विहगों की
पात-पात में झपकी ले लें
रात बिताई
घड़ियां गिन-गिन
 बीतें ना कुन्दन से ये दिन

मुर्झाया
धरती का आनन
झुलस गये वन उपवन कानन
क्षीण हुई
नदिया की धारा
लहर- लहर
में उठता क्रन्दन
कब लौटेगा बैरी सावन
अगन लगायें गर्मी के दिन।
सुलग- सुलग
अधरों से झरतीं
विरहन के गीतों की कड़ियाँ
तारों से पूछें दो नयना
रूठ गई
क्यों नींद की परियाँ
भरी दोपहरी
सिहरे तन-मन
दहक गए अंगारों से दिन |


शशि पाधा


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